Shattila Ekadashi 2025: षटतिला एकादशी 25 जनवरी 2025 को है. कहते हैं षटतिला एकादशी गंभीर पापों से मुक्ति दिलाती है. इस दिन श्रीहरि को प्रसन्न करने के लिए व्रत कथा का पाठ करना ना भूलें.
Shattila Ekadashi 2025: कलियुग में एक मात्र एकादशी ऐसा व्रत है जिसके प्रभाव से व्यक्ति गंभीर पापों से भी मुक्ति पा लेता है और अंत में उसे ईश्वर की शरण मिलती है. आज 25 जनवरी 2025 को षटतिला एकादशी का व्रत है.
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने वालों को नरक की यातनाएं नहीं सहनी पड़ती. षटतिला एकादशी व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करना चाहते हैं तो पूजा में इस कथा का जरुर श्रवण करें, कथा के बिना ये व्रत अधूरा माना गया है.
षटतिला एकादशी कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha)
एक बार नारद मुनि ने भगवान श्रीहरि से षटतिला एकादशी का माहात्म्य पूछा, वे बोले – ‘हे प्रभु! आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें. षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है? उसकी क्या कथा है, कृपा कर मुझसे कहिए. श्रीहरि बोले ‘बहुत पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी. वह सदा व्रत-उपवास किया करती थी. एक बार वह एक मास तक उपवास करती रही, इससे उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया.
वह अत्यंत बुद्धिमान थी फिर उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्नादि का दान नहीं किया. मैंने चिंतन किया कि इस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है तथा इसको वैकुंठ लोक भी प्राप्त हो जाएगा, किंतु इसने कभी अन्नदान नहीं किया है, अन्न के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है.
ऐसा चिंतन कर मैं मृत्युलोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी. इस पर उस ब्राह्मणी ने कहा-हे योगीराज! आप यहां किसलिए पधारे हैं? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए. इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया. मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया. कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्यागकर स्वर्ग आई. मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित घर मिला, किंतु उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया.
वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली – ‘हे प्रभु! मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है, किंतु फिर भी मेरा घर खाली है, इसका क्या कारण है?’ श्रीहरि बोले – ‘तुम अपने घर जाओ और जब देव-स्त्रियां तुम्हें देखने आएं, तब तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का माहात्म्य और उसका विधान पूछना, जब तक वह न बताएं, तब तक द्वार नहीं खोलना.’
प्रभु के ऐसे वचन सुन वह अपने घर गई और जब देव-स्त्रियां आईं और द्वार खोलने के लिए कहने लगीं, तब उस ब्राह्मणी ने कहा – आप मुझे षटतिला एकादशी का माहात्म्य बताएं।’ देव स्त्री ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया, तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया. देव-स्त्रियों ने ब्राह्मणी को सब स्त्रियों से अलग पाया. उस ब्राह्मणी ने भी देव-स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और उसके प्रभाव से उसका घर धन्य-धान्य से भर गया, कहते हैं इस एकादशी व्रत के करने वाले को जन्म-जन्म की निरोगता प्राप्त हो जाती है. मृत्यु के बाद आत्मा को पीड़ाएं नहीं सहनी पड़ती.
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