दिल्ली में 05 फरवरी को विधानसभा चुनाव होने को हैं। इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। दिल्ली चुनाव में मुख्य मुद्दा रेवड़ी ही है। तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस चुनाव में तमाम फ्री योजनाओं के वादे किए हैं। इस बीच सवाल है कि क्या सीएम चेहरे की महत्ता धीरे-धीरे चुनाव में कम होती जा रही है।
HighLights
- दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने एक ही प्रयोग किया है।
- बीजेपी के पास इस बार भी अब तक कोई सीएम चेहरा नहीं है।
मुद्दा भारी या चेहरा?
कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र तक हर चुनाव में मुद्दा चेहरे पर भारी पड़ा। वैसे भाजपा का मानना है कि राजनीति में प्रयोग अहम होता है। पार्टी तय सिद्धांत के अनुसार चलती है लेकिन मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करना या न करना परिस्थिति और रणनीति के अनुसार तय होता है।
राष्ट्रीय स्तर पर दिखता है चेहरे का दबदबा
गुजरात से लेकर केंद्र तक मोदी युग में यह पहली बार हुआ। साफ है कि रेवड़ी की आंधी बहुत ताकतवर होती है। अगर दिल्ली की बात हो तो 2013 से अब तक जो तीन विधानसभा चुनाव हुए हैं उसमें आम आदमी पार्टी के लिए अरविंद केजरीवाल का कद पार्टी से बड़ा दिखा। उनका विधायक वैसे ही जीतता रहा जिस तरह केंद्र में भाजपा के सांसद मोदी के नाम से जीतते रहे।
कांग्रेस ने भी किया प्रयोग
बीजेपी का मुख्य चेहरा कौन?
यह सच है कि 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर रही प्रदेश भाजपा में कोई सर्वमान्य और लोकप्रिय चेहरा नहीं है। विजय कुमार मल्होत्रा, हर्षवर्धन, किरण बेदी जैसे चेहरे फेल हो चुके हैं। ऐसे में फिर से वही दांव सटीक लग रहा है जो छत्तीसगढ़, राजस्थान, ओडिशा जैसे राज्यों में अपनाया गया। यानी वहां के स्थापित और ताकतवर हो चुके कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों- भूपेश बघेल, अशोक गहलोत और नवीन पटनायक के सामने परोक्ष रूप से मोदी की गारंटी को पेश कर दिया गया।
पिछले कुछ चुनावों की बात करें तो सिर्फ हरियाणा में भाजपा ने नायब सिंह सैनी को चेहरे के रूप में परोक्ष रूप से प्रोजेक्ट किया था। तीन साल पहले उत्तर प्रदेश में मोदी-योगी की जोड़ी चली। बाकी राज्यों में भाजपा की रेवड़ी बंटी लेकिन गारंटी मोदी की चली। सभी मामले सफल रहे। दिल्ली में भी वही दांव है।
भाजपा ने पहले से दिल्ली वासियों को मिल रही मुफ्त की सेवाएं जारी रहेंगी इसकी घोषणा खुद प्रधानमंत्री मोदी से करवाई गई। हालांकि, भाजपा के अंदर जरूर यह विमर्श तेज होने लगा है कि विश्व की सबसे बड़ी होने के बावजूद राज्यों में सर्वमान्य और लोकप्रिय चेहरे का अभाव चिंता का विषय है।
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